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मुहब्बत का मैंने वो मक़ाम पा लिया
मिले उसको रोशनी, सो खुद को जला लिया
हम खाक है और वो है सितारों का हकदार
मिले उसको बुलंदी, सो खुद को मिटा लिया
जिन्दगी ने तोहफे में दिए कुछ फूल कुछ कांटे
काँटों पे सोये हम, उसे फूलों पे बिठा लिया
करता भी क्या उस घर का जिस में नहीं है वो
इसलिए "अनन्त" मैंने घर को जला दिया
-अभिषेक "अनन्त"
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5 comments:
-अभिषेक "अनन्त"..जी
दिल को छू लिया आपकी रचना ने . आप बड़े अच्छे ख्यालात रखते हैं
आभार .
क्या बात है खुबसूरत गज़ल बधाई
विरेन्द्र जी और सुनील जी बहुत बहुत शुक्रिया
मुहब्बत का मैंने वो मक़ाम पा लिया
मिले उसको रोशनी, सो खुद को जला लिया
दिल को छू लिया आपकी रचना ने .
खुबसूरत गज़ल
बधाई
bahot achche.
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