Meri aawaj

Meri aawaj

Thursday, March 17, 2016

शब्दों के नगीने जड़ा करता हूँ

शब्दों के नगीने जड़ा करता हूँ;
जिंदगी पर गजल कहा करता हूँ।

उसको पाना खुद को खोना है;
कुछ फ़क़ीरों से सुना करता हूँ।

जहाँ तक नजर जाये नजर आये;
उसको ही प्यार कहा करता हूँ।

मजहब तो मुहब्बत सिखाता है;
बस किताबों में पढ़ा करता हूँ।

रोज मर-मर के यूँ जीना कैसा;
रोज जी-जी के मरा करता हूँ।

जो सब कहते हैं वो मैं सुनता हूँ;
और फिर मन की किया करता हूँ।

शब्दों के नगीने जड़ा करता हूँ;
जिंदगी पर गजल कहा करता हूँ।


-अभिषेक खरे
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Thursday, March 10, 2016

गर आईना दिखाता चेहरों के परे


गर आईना दिखाता चेहरों के परे;
तो कई घरों में आईने टूटे होते।

कुछ रिश्ते इकतरफा निभाये हमने;
यूँ न होता तो कई अपने छूटे होते।

सितमगरो का यूँ ना होंसला बढता;
सितमपरस्त गर हमेशा चीखे होते।

जिंदगी ने जम के पिलायी साकी;
वरना हम मैकदे में बैठे पीते होते।

बेंच कर ईमान सब बड़ गए आगे;
हमने भी बेंचा हम क्यों पीछे होते।

वो ले के गया मेरे हिस्से की बहार;
वरना हमारे वीराने भी बगीचे होते।

गर आईना दिखाता चेहरों के परे;
तो कई घरों में आईने टूटे होते।

-अभिषेक खरे
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