Meri aawaj

Meri aawaj

Thursday, March 17, 2016

शब्दों के नगीने जड़ा करता हूँ

शब्दों के नगीने जड़ा करता हूँ;
जिंदगी पर गजल कहा करता हूँ।

उसको पाना खुद को खोना है;
कुछ फ़क़ीरों से सुना करता हूँ।

जहाँ तक नजर जाये नजर आये;
उसको ही प्यार कहा करता हूँ।

मजहब तो मुहब्बत सिखाता है;
बस किताबों में पढ़ा करता हूँ।

रोज मर-मर के यूँ जीना कैसा;
रोज जी-जी के मरा करता हूँ।

जो सब कहते हैं वो मैं सुनता हूँ;
और फिर मन की किया करता हूँ।

शब्दों के नगीने जड़ा करता हूँ;
जिंदगी पर गजल कहा करता हूँ।


-अभिषेक खरे
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